यदा यदा ही धर्मस्य इसका अर्थ क्या है?

श्रीमद्भागवत गीता का नाम तो आपने सुना होगा, इस उपदेश को महाभारत में भगवान श्री कृष्ण दिया था।

श्रीमद्भागवत गीता का ही एक श्लोक है जो बहुत मशहूर है आपने इसे बहुत सी जगहों पे पढ़ा और सुना होगा परन्तु हो सकता है आपको इसका मतलब समझ में न आया हो क्योंकि ये संस्कृत में है, इसीलिए हम यहां आपको इसका हिंदी में अर्थ बताने वाले हैं।

यदा यदा ही धर्मस्य

 

यदा यदा ही धर्मस्य महाभारत श्लोक

Lyrics

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

अर्थ

इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं, “जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ
सज्जनों और साधुओं की रक्षा के लिए, दुर्जनो और पापियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ”

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